Wednesday, March 25, 2020

Akbar birbal ki New kahani in Hindi for kids with moral

Today we have Akbar Birbal ki New Kahani in Hindi for kids with Moral.

अकबर बीरबल  


New Kahani in Hindi



आपसे बड़ा नहीं हो सकता | akbar birbal ki kahani


बीरबल को जुकाम हो गया था। वह दरबार में आना नहीं चाहते थे लेकिन शहंशाह अकबर का काम उनके बिना नहीं चलता था वह बादशाह के सामने बैठकर किसी मसले पर गुफ्तगू कर रहे थे, तभी अचानक बीरबल को.छींक आ गई। सामने बैठे बादशाह के मुख से अचानक ही निकल गया, "बीरबल, तुम वास्तव में ही बड़े मूर्ख हो।" बीरबल ने छींक रोकने की पूरी कोशिश की थी, पर छींक आ ही गई थी।

बीरबल भी अपनी इस बेतुकी और बेसमय की छींक पर शर्मिंदा थे। लेकिन खामोश रहना बीरबल जैसे हाजिरजवाब व्यक्ति के स्वभाव में शामिल नहीं था। कुछ समय तक चुप रहने के बाद बीरबल बोले, "जी जहांपनाह, लेकिन आपसे बड़ा तो मैं कभी हो ही नहीं सकता।' शहंशाह यह सुनकर हंसने लगे और कहने लगे, "बीरबल, तुमसे तो कोई जीत ही नहीं सकता। '




दो माह का एक माह |  Hindi for kids with moral 


शहंशाह अकबर के दिमाग में भी बैठे-बैठे असंभव को संभव बनाने के विचार उठते ही रहा करते थे। बीरबल उनके इस काम में मदद करते रहते ने थे। एक दिन अकबर सोचने के बाद फैसला बहुत लिया कि दो महीनों को एक महीना बनाया जाए। अपने फैसले को बहुत तोलने के बाद शहंशाह ने बीरबल को अपने इस फैसले से अवगत कराया। बीरबल यह सुनकर हैरान रह गए, प्रशंसा करते हुए कहा,

"जहांपनाह, इस तरह से इस दुनिया का तो आप भला ही करेंगे, क्योंकि चांदनी रात 15 दिन के बदले 30 दिन की होगी?" शहशाह अकबर बीरबल के इस तर्क पर और स्वयं को कुदरत के सामने मजबूर पाकर शर्मिंदा हो गए। शहंशाह बोले, "बीरबल, हम दो माह को एक बना सकते हैं, पर कुदरत के नियमों को नहीं बदल सकते। यह तो सोचा ही नहीं । तुम महान हो, बीरबल। तुमने मुझे गलत फैसला लेने से पहले ही सचेत कर दिया।" यह कहते हुए बादशाह ने बीरबल को गले से लगा लिया।




मै नौकर आपका हूँ , बैंगन का नहीं |  kahani in Hindi for kids


बादशाह अकबर और बीरबल शाही बाग में बैठे बैंगन की सब्जी पर बात कर रहे थे शहंशाह बैंगन की प्रशंसा कर रहे थे और बीरबल भी उनकी हां-में-हां मिलाते जा रहे थे तथा बीच-बीच में बैंगन के औषद्यीय गुणों को भी गिनाते जा रहे थे। इसके दो महीने बाद शहंशाह ने एक दिन सोचा कि देखें बीरबल की बैंगन के बारे में अब क्या राय है। बीरबल संयोग से उसी समय अकबर से मिलने आ गए।

अकबर बादशाह ने उन्हें सादर बैठाया और बैंगन की बुराई करने लगे। बीरबल भी शहंशाह की हां-में-हां मिलाने लगे और साथ ही यह भी कहने लगे कि हुजूर, क्या बताएं, बैंगन की सब्जी इतनी खराब है कि इसको खाने से बादी हो जाती है। बादशाह बीरबल के मुंह से बैंगन की बुराई सुनकर हैरान रह गए और कहने लगे, "बीरबल, तुम्हारी इस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता। हमने उस दिन बैंगन की प्रशंसा की तो तुमने भी प्रशंसा की और आज हमने बैंगन की बुराई की तो तुमने भी बुराई करनी शुरू कर दी।

आखिर तुम्हारी अपनी कोई व्यक्तिगत राय बैंगन के बारे में क्यों नहीं है? बीरबल, यह सब क्यों?" बीरबल बोले, "जहांपनाह, मैं आपका सेवक हूं, बैंगन का नहीं।" यह सुनकर शहंशाह की आंखें खुशी के मारे भर आईं। उन्होंने बीरबल को गले से लगा लिया।





बीरबल की खिचड़ी 


शहंशाह अकबर हमेशा कुछ नया करने में विश्वास करते थे और इसके लिए धन भी खर्च करने में पीछे नहीं हटते थे। एक बार शहंशाह ने दरबार में घोषणा की, "जो व्यक्ति महल से बह रही नदी में पूरी रात खड़ा रहेगा, उसे हम ढेर सारे धन से पुरस्कृत करेंगे।" जाड़े की ठंडी रात में नदी के ठंडे पानी में रातभर रहना सबके वश की बात नहीं थी। एक गरीब धोबी के कानों तक जब शहंशाह की घोषणा पहुंची तो उसके कान खड़े हो गए। उसने सोचा कि घोर निर्धनता में मर-मरकर जीने से तो अच्छा है कि मैं शाही घोषणा का मालन करते हुए पूरी रात नदी में गुजार दू। जिंदा रहा तो गरीबी से मुक्ति मिल जाएगी और मर गया तो भी इस नरक की जिंदगी से छुटकारा मिल जाएगा। यह सोचकर गरीब धोबी ने सारी रात नदी में खड़े रहकर ही गुजार दी।

दूसरे दिन वह दरबार में पहुंचा और शहशाह से कहा, "जहांपनाह, मैने नदी में पूरी रात गुजार दी है। अब मुझे शाही खजाने से इनाम दिया जाए। वादशाह अकबर ने उसे देखते हुए पूछा, "तुम्हारे पास इस बात का क्या सबूत है कि तुम सारी रात नदी में खड़े रहे?" धोबी बोला, जिहांपनाह, मैं पूरी रात राजमहल की छत पर जल रहे वीपक की लौ को देखता रहा| शहंशाह मुस्कराते हुए बोले, "अच्छा, अब समझ में आया, महल के चिराग की रोशनी की गरमी के कारण तुम पूरी रात पानी में आराम से खड़े रहे। अतः तुम इनाम के असली हकदार नहीं हो सकते। बादशाह के इतना कहते ही धोबी का चेहरा लटक गया। गरीब और कमजोर धोबी शहंशाह से जुबान भी तो नहीं लड़ा सकता था।

वह दरबार से बाहर आया और बीरबल के समीप पहंचकर बोला, "हुजूर, आप तो गरीबों के दोस्त हैं। मेरा ईश्वर जानता है मैं ने सारी रात नदी के पानी में गुजारी है लेकिन बादशाह ने मुझे इनाम देने से इंकार कर दिया। बीरबल ने पूछा, "इसका कारण क्या है?"' धोबी ने बताया, "शहंशाह कहते हैं कि तुमने राजमहल के चिराग की लौ की गरमी के कारण नदी में खड़े रहकर रात गुजारी है। भला तुम इनाम के हकदार केसे बन सकते हो।बीरबल को यह जानकर बड़ी ही हैरानी हुई और उन्होंने धोबी को ढाढ़स बंधाते हुए तुम धैर्य रखो। मैं तुम्हें इनाम दिलवाऊंगा।" धोबी भारी कदमों से घर को लौट गया। दूसरे दिन बीरबल जब दरबार में समय से नहीं पहुचे तब शहंशाह ने एक नौकर को उन्हें बुलाने के लिए भेजा।

 नौकर बीरबल के पास से लौ टकर आया तो शहंशाह ने उससे पूछा, "क्या हुआ, बीरबल नहीं मिले?'" नौकर ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, हुजूर, बीरबल ने कहलवाया है कि वे तब तक नही आ सकते जब तक उनकी खिचड़ी पूरी तरह से पक नहीं जाती।" यह सुनकर शहंशाह को बड़ा ही आश्चर्य ह आ कि बीरबल दरबार का काम छाडकर आज खिचड़ी क्यों पका रहे हैं? जब बीरबल बहुत इंतजार करने के बाद भी दरबार में नहीं आए तब शहंशाह कुछ दरबारियों के साथ स्वयं बीरबल के घर की ओर बढ़ गए। बीरबल के घर पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक बहुत लंबे बांस के शीर्ष पर एक हांड़ी लटकी हुई है और बीरबल उसके नीचे आग जला रहे हैं । शहंशाह को बड़ी ही हैरानी हुई कि कहां हांड़ी है और कहां आग जल रही है।

 ऐसे तो पूरी उमर बीत जाने के बाद भी खिचड़ी नहीं पकेगी। शहंशाह यह सोचते हुए बीरबल से बोले, "बीरबल, यह क्या मूुर्खता है? हांडी ऊपर बांस में लटक रही है और तुम यहां जमीन पर आग जला रहे हो , तुम्हारी खिचड़ी भला कभी पक सकेगी? "क्यों नहीं पकेगी, जहांपनाह!" बीरबल ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा। "लेकिन कैसे बीरबल? आंच तो हांड़ी तक पहुंच ही नहीं रही है।" बादशाह ने आश्चर्य से कहा। "पहुंच रही है हुजूर बिल्कुल वैसे ही, जैसे महल के ऊपर जल रहे दीपक की रोशनी की गरमी पाकर धोबी सारी रात नदी के पानी में खड़ा रह गया था। बीरबल अवसर का लाभ उठाते हुए अपनी बात कह दी। बीरबल के यह कहते ही बादशाह शर्मसार हो गए और उन्होंने धोबी को दरबार में बुलाकर शाही खजाने में से धन देने का हुक्म जारी कर दिया।

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